अपने सुख - चैन को छोड़ कर,
जीवन की मुश्किलों को ही चुना उसने।
राह में आने वाली हर बाधा को भी,
पार कर दिखाया उसने।
अपने कर्मो को खुद ही चुना था जिसने।
सबकी नफरतो को दिल मे दबा के,
बस प्यार ही लुटाया जिसने।
घर छोड़ा, परिवार छोड़ा,
आखिर देश भी अपना त्याग दिया उसने।
जितना गेर होते हुए भी कर दिया उसने।
उसको देख कर तो खुदा भी सोचे,
ये कौन- सा फरिस्ता मैंने बनाया।
कि उसने तो अपनी खुशियों को,
लोगों की मुस्कुराहट मे ही पाया।
चाहती तो जी सकती थी वो भी नोर्मल लाइफ,
जाने क्यों मुश्किलों को ही गले लगाया उसने।
दिल था एक mother का जिसमे,
चाहे किसी को जनम न दिया था उसने।
किया था जो लोगों के लिए उसने,
कर न पाया कोई चाहे आये कितने।
बचपन, जवानी और बुढ़ापा भी,
लोगों की सेवा में लुटाया जिसने।
माँ क्या होती हैं - यह हमें बताया उसने।
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